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सत्ता के लिए गर्भवती महिला से बड़ा है गर्भवती हथिनी का दुःख

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गर्भवती हथिनी की मौत पर जिन लोगों की छाती फट रही है और दहाड़े मार-मार कर मताम मना रहे हैं, उन लोगों की छाती तब नहीं फटी जब गर्भवती महिला ने सड़क किनारे बच्चे को जन्म दिया और फिर उसके बाद 160 किलोमीटर पैदल चली. उन लोगों की छाती तब भी नहीं फट रही है जब एक गर्भवती छात्रा सफ़ूरा ज़रगर को पुलिस ने गिरफ्तार कर जेल में बंद कर दिया और उसकी जमानत नहीं होने देने की पूरी तैयारी है, जबकि जेल में बंद गर्भवती छात्रा गंभीर संक्रमण की शिकार हो गई है.

गर्भवती हथिनी की मौत पर छाती पीट रहे इन नकाबपोशों को समाज के बीच नंगा करने की जरूरत है. वर्कर्स यूनिटी के संस्थापक संपादक संदीप रउजी के एक आलेख को कुछ संशोधनों के साथ हम यहां प्रकाशित कर रहे हैं.

सत्ता के लिए गर्भवती महिला से बड़ा है गर्भवती हथिनी का दुःख

  • एक गर्भवती मज़दूर औरत लॉकडाउन में पैदल ही अपने परिजनों के साथ घर को निकलती है. रास्ते में उसे प्रसव पीड़ा होती है और वो एक बच्चे को जन्म देती है. राहगीर महिलाएं इस प्रसव में मदद करती हैं. बच्चे का नाभिनाल काटा जाता है. वो मज़दूर औरत जन्म देने के एक घंटे बाद ही नवजात को गोद में उठाए फिर अपने घर को निकल पड़ती है.
  • आज सफूरा ज़रगर की जमानत याचिका खारिज हो गई. वह गर्भवती है. जेल के अंदर उसे इन्फेक्शन भी हो चुका है. उसका जुर्म है देश को धर्म के आधार पर बांटने वाले कानून का विरोध करना. अब जब तक ऊपर की कोई अदालत फैसला न पलट दे वह जेल में ही अपनी गर्भावस्था बिताएगी.

लेकिन किसी मंत्री या किसी सत्तारूढ़ पार्टी के सांसद को ये ख़बर आक्रोशित नहीं करती बल्कि पूरे लॉकडाउऩ के दौरान ऐसी सैकड़ों ख़बरों से वे अनजान बने रहते हैं. इन सांसदों और मंत्रियों को गुस्सा तब आता है जब एक गर्भवती हथिनी की मौत हो जाती है. इंसानों के मारे जाने पर हद दर्ज़े तक पत्थर बना इस देश का मीडिया भी संवेदनशील हो जाता है और फिर जो होता है वो हम दो दिन से सोशल मीडिया पर देख रहे हैं.

मल्लापुरम में एक गर्भवती हथिनी की दर्दनाक मौत होने के बाद पूर्व केंद्रीय मंत्री और बीजेपी सांसद मेनका गांधी ने न केवल कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी पर तंज कसा बल्कि इसे सांप्रदायिक रंग देने में कोई कसर नहीं छोड़ी.

मेनका ने ट्वीट कर कहा, ‘मल्लापुरम जानवरों के साथ इस तरह की घनघोर आपराधिक घटनाओं के लिए जाना जाता है. एक भी शिकारी के ख़िलाफ़ आज तक कोई कार्यवाही नहीं हुई ताकि वे अपनी करतूत जारी रख सकें.’

इसके बाद उन्होंने केरल राज्य के जंगल विभाग से जुड़े अधिकारियों मंत्रियों के फ़ोन नंबर सार्वजनिक किए और लोगों से उन्हें फ़ोन करके कार्यवाही के लिए दबाव बनाने की अपील की. यही नहीं केंद्रीय पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर भी ट्वीट किया, ‘हम इस घटना की उचित जांच करने और दोषियों को पकड़ने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ेंगे. पटाखे खिलाना और हत्या करना भारतीय संस्कृति में शामिल नहीं हैं.’

अपने ट्वीटर अंकाउट से रतन टाटा ने इंसाफ की मांग की है. ट्वीट कर वे लिखते हैं, ‘ मैं ये जानकर बहुत दु:खी हूं कि कुछ लोगों ने एक बेकसूर गर्भवती हथिनी को पटाखे भरा अनानास खिलाकर मार दिया. भोले भाले जानवर के प्रति इस करह का अपराधिक रवैया ठीक वैसा ही है जैसे किसी इंसान कि इरादतन हत्या. न्याय होना चाहिए.’

रतन टाटा के ट्वीट को रिट्वीट करते हुए PETA जो कि एक पशु अधिकार संगठन उन्होंने लिखा, ‘ पेटा इंडिया की आपातकालीन प्रतिक्रिया टीम केरल वन विभाग के वरिष्ठ वन अधिकारियों के संपर्क में है. अज्ञात व्यक्तियों के खिलाफ मामला दर्ज किया गया है और वे जल्द ही अपराधियों को पकड़ने की उम्मीद कर रहे हैं.

ये वो नेता, मंत्री और उद्योगपति हैं जिनके मुंह से अभी तक महापलायन के दौरान सड़कों, रेल पटरियों पर और ट्रेनों में मरते प्रवासी मज़दूरों के लिए उफ़ तक नहीं निकला. मेनका गांधी के ट्विटर हैंडल पर लॉकडाउन के दौरान कुत्तों और जानवारों की परेशानियों का ज़िक्र और उनकी फ़ोटो के साथ कई ट्वीट हैं लेकिन पटरी पर मारे गए, ट्रकों के नीचे दबे, भूख प्यास से ट्रेनों में मरे पड़े मज़दूरों को लेकर एक भी ट्वीट नहीं है.

मेनका गांधी ने कहा है कि हथिनी की मौत हत्या है, तो जावडे़कर कहते हैं कि इसकी जांच होनी चाहिए. दोषियों को पकड़ने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ेंगे. पटाखे खिलाना और हत्या करना भारतीय संस्कृति में शामिल नहीं हैं.’

लेकिन सरकारी आंकड़ों के ही हिसाब से श्रमिक स्पेशल ट्रेनों में 80 मज़दूरों की मौत हो गई. अपने घरों को लौटते 600 से अधिक मज़दूर रास्ते में ही अपनी जान गंवा बैठे, क्या ये मौतें हत्या नहीं हैं ? क्या इनकी जांच नहीं होनी चाहिए ? क्या यह भारतीय संस्कृति में शामिल है ?

मोदी सरकार और उनके मंत्री सांसद मज़दूरों की मौतों और उनकी परेशानियों से लगातार ध्यान भटकाने की कोशिश कर रहे हैं. कभी तबलीगी जमात तो कभी पाकिस्तान चीन लेकिन अभी तक उन्हें कामयाबी नहीं मिली.

इसी कड़ी में हथिनी की मौत को भी धार्मिक रंग दे कर मज़दूरों की तकलीफ़ों से ध्यान भटकाने की कोशिश की गई. मोदी सरकार के इस नापाक मंसूबे में मीडिया ने हमेशा की तरह बढ़चढ़कर हिस्सा लिया. यहां तक कि एनडीटीवी ने इस ख़बर को ऐसे परोसा जैसे पत्रकार आखों देखा हाल बता रहा हो.

मोदी के छह साल के कार्यकाल का ये एक ढर्रा बन चुका है कि फ़ेक न्यूज़ गढ़ी जाती है और फिर गोदी मीडिया के पत्रकार और बीजेपी आरएसएस के मंत्री नेता इसमें घी डालकर उसे देश का प्रमुख मुद्दा बना देते हैं और बीजेपी आईटी सेल का गिरोह उसे ट्रेंड और वायरल कराने में जुट जाता है. अगर ध्यान से देखें तो हथिनी की मौत के मामले में भी वही ढर्रा दिखाई देता है. प्लांटेड ख़बर, बयानबाज़ी और सोशल मीडिया पर हंगामा.

लेकिन कई लोग पूछ रहे हैं कि औरंगाबाद रेल हादसे में 16 मज़दूरों की मौत हो गई थी, उत्तर प्रदेश के औरैया जिले में ट्रक हादसे में 24 मज़दूर की मौत हो गई थी, मेनका गांधी और प्रकाश जावड़ेकर को इस पर गुस्सा कब आएगा ?

जिन लोगों ने इस देश की अर्थव्यस्था को 2.94 ट्रिलियन डॉलर तक पहुचाने में साथ निभाया है, जिन के कंधों पर इस की 85 फीसदी अर्थव्यस्था टिकी हुई है, उनकी मौत कीड़ों मकोड़ों तरह हो रही है और पीएम से लेकर इन नेताओं की ज़बान पर ताला लगा हुआ है.

पटाखा खिलाने की ख़बर फर्ज़ी थी ?

बुधवार को जब ख़बर आई थी तो उसमें कहा गया था कि भारी बारिश से अपना रास्ता भटक कर रिहाईशी इलाके में पहुंची हथिनी पानी में खड़ी थी और पटाखों से भरा अनानास खाने से उसके मुंह में ही विस्फ़ोट हो गया.

एनडीटीवी ने लिखा कि किसी ने उसे जानबूझ कर पटाखों से भरा फल दिया था और विस्फ़ोट के बाद उसका मुंह बुरी तरह घायल हो गया. इसके बाद आए बचावकर्मियों की काफ़ी कोशिशों के बाद भी वो पानी से नहीं निकली और आखिर वहीं पर भूख प्यास से उसकी मौत हो गई.

जब मजदूर सैकड़ों किमी दूर अपने घरों को पैदल लौट रहे थे, ट्रेड यूनियनें कहां थीं ? कोरोना काल में डरी सहमी जनता ने जुटाई हिम्मत, तस्वीरों में देखिए. इस दिल दहला देने वाली ख़बर के बाद सोशल मीडिया पर इंसानी क्रूरता के ख़िलाफ़ आक्रोश ज़ाहिर किया जाने लगा लेकिन दूसरे दिन इन ख़बरों का खंडन भी आ गया कि असल में पटाखों से भरा फल किसी दूसरे जंगली जानवर के लिए रखा गया था.

‘लल्लनटॉप’ की रिपोर्ट के अनुसार ‘वन्य अधिकारियों ने हथिनी को फटाकों से भरा अनानास खिलाने वाली बात को फर्जी बताई है उनका कहना है कि आमतौर पर जंगली इलाकों में लोग जानवरों से बचने के लिए इस तरह का तरीका अपनाते हैं, जिसे हथिनी ने खा लिया होगा.’

लेकिन तब तक इस मामले में मोदी सरकार के मंत्री और बीजेपी के कई नेता कूद चुके थे और उसे केरल में सत्तारूढ़ दलों पर निशाना साधने का ज़रिया बना लिया, ताकि मज़दूरों और किसानों की समस्याओं से ध्यान भटकाया जा सके लेकिन लाख टके का सवाल है कि क्या मोदी सरकार इसमें क़ामयाब हो पाएगी ? क्या मज़दूर वर्ग अपने पीठ पर लगे जख़्म को भूल पाएगा.

पूछा तो ये भी जाना चाहिए कि लॉकडाउन में गर्भवती महिलाओं के लिए मोदी सरकार ने क्यों नहीं अलग नियम बनाकर उनकी सुविधा का इंतज़ाम किया, जबकि इन औरतों को पैदल चलते, ट्रेन में, पुलिस की गाड़ी में बच्चे को जन्म देना पड़ा ? या उन महिलाओं के बारे में मेनका गांधी या प्रकाश जावड़ेकर ने अभी तक अपना गुस्सा क्यों नहीं दिखाया, जो कोरोना के समय में भी जेलों में बंद हैं बल्कि सीएए एनआरसी के ख़िलाफ़ प्रोटेस्ट में शामिल एक गर्भवती छात्रा सफ़ूरा ज़रगर को इसी दौरान गिरफ़्तार कर जेल में डाला दिया जाता है और ज़मानत न मिलने का पूरा इंतज़ाम तक कर दिया जाता है ? या गर्भवती हथिनी की मौत, राजनीति की रोटियां सेंकने वाले मुहावरे के रूप में इस्तेमाल हो रहा है ?

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