Home ब्लॉग सुनो हुक्मरानों, जल्दी हमारा सुकून हमें वापस करो

सुनो हुक्मरानों, जल्दी हमारा सुकून हमें वापस करो

10 second read
0
0
604

सुनो हुक्मरानों, जल्दी हमारा सुकून हमें वापस करो

विद्वान राम चन्द्र शुक्ल अपनी सोशल मीडिया पेज पर लिखते हैं, ‘अत्यधिक भय आदमी के विवेक व तर्कशक्ति को नष्ट कर देता है तथा इंसान किंकर्तव्यविमूढ़ हो जाता है. पिछले कुछ दिनों से समाज व सोशल मीडिया पर इसके हजारों उदाहरण दिख रहे हैं.’ इन हजारों उदाहरण में हालिया कोरोना वायरस के नाम पर फैलाये गये भय ने न केवल पूरे देश को, अपितु सारी दुनिया की जनता को आतंक से भर दिया है.

दुनिया भर की जनता को भय के आतंक से भर देने का यह सुनियोजित कारोबार इस सदी के पहले दिन से ही चालू है. इस सदी का पहला वैश्विक आतंक Y2K था, उसके बाद तो आये दिन नये नये आतंक को गढ़ा जाता रहा है. इसमें कुछ प्रमुख इस प्रकार हैं –

  • 2000 – Y2K संकट
  • 2001 – एंथ्रोक्स
  • 2002 – वेस्ट नील वायरस
  • 2003 – सार्स वायरस
  • 2005 – वर्ड फ्लू
  • 2006 – ई-कोलाई
  • 2008 – आर्थिक महामारी
  • 2009 – स्वाइन फ्लू
  • 2012 – माया कैलेंडर की भविष्यवाणी
  • 2013 – उत्तर कोरिया का आतंक
  • 2014 – ईबोला वायरस
  • 2015 – आईएसआईएस का आतंक
  • 2016 – जीका वायरस
  • 2020 – कोरोना वायरस

ये तो कुछ प्रमुख उदाहरण हैं, जिससे दुनिया को ही खत्म हो जाने को घोषणा सरकार और उसकी गिद्ध मीडिया की है, इसके अलावे छोटी बड़ी ऐसी हजारों अफवाहें आये दिन फैलाया जाता है. मसलन, अभी जब कोरोना वायरस के आतंक से लोगों को पूरी तरह आतंकित कर दिया गया है, उसी समय आसमान से उल्कापिंड के पृथ्वी से टकराने की भविष्यवाणी की जा रही थी. इसी तरह कभी घरती उलट जाने, कभी ब्लैक होल के पास आ जाने, कभी छोटे मोटे आतंकी संगठन का हमला, कभी परमाणु युद्ध की भविष्यवाणी जैसी अफवाहें फैलायी जा रही है.

ऐसा ही एक अफवाह पिछली सदी के उतरार्द्ध में देखने को मिला था, जब मैं स्वयं एक सर्वे में गांव-गांव भ्रमण कर रहा था. दरअसल उस वर्ष बड़े पैमाने पर सूरजमुखी का व्यवसायिक उत्पादन हेतु किसानों ने खेतों में सूरजमुखी का फसल लगाया था. जब फसल पकने को आया तब एक भयावह अफवाह फैल गई.

इस अफवाह के अनुसार बताया गया था कि सूरजमुखी के पौधे के पत्तों के बीच छोटा-सा हरे रंग का बेहद जहरीला सांप पाया जाता है. पौधे के पत्ते का रंग भी हरा होने के कारण यह सांप आसानी से दिखाई नहीं पड़ता है और जो कोई भी व्यक्ति इस फसल के बीच जाता है, यह बेहद जहरीला सांप उस व्यक्ति के ललाट पर काट लेता है और वह व्यक्ति वहीं पर तत्क्षण मर जाता है. वह पानी भी नहीं मांग पाता है. इस अफवाह का आतंक सर्वत्र व्याप्त हो गया था. लोग मौत के भय से सूरजमुखी के खेतों की ओर जाना बंद कर दिया और बताया गया कि फलाना गांव में 5 लोग मर चुके हैं.

अपने भ्रमण के क्रम में हमारी टीम जब उस ‘फलाना’ गांव पहुंची तो उस पीड़ित परिवार की खोजबीन हमने शुरू किया. घंटों प्रयास के बाद यह पता चला कि यहां भी इस ‘अफवाह’ की जानकारी सबको है और वे सब डरे हुए हैं, पर उस गांव में तो किसी व्यक्ति की सांप काटने से किसी व्यक्ति की मृत्यु नहीं हुई. अलबत्ता दूसरे गांव में सांप काटने से 6 लोगों की मौत हो गई है और उसका परिवार दु:ख से बदहाल है, जो कि स्वभाविक भी था. हमलोग आगे उस ‘दूसरे’ गांव की ओर बढ़ चले.

उस ‘दूसरे’ गांव पहुंचने पर हमने फिर पीड़ित परिवार का खोजबीन शुरु किया. यहां भी यही बात पता चला कि सांप के इस ‘अफवाह’ की जानकारी सबको है पर यहां कोई भी नहीं मरा है, पर ‘दूसरे’ गांव में 4 लोग मर गया है और उसका परिवार दुःख से बदहाल है.

इस तरह हमारी टीम तकरीबन डेढ़ सौ गांवों में भ्रमण किया लेकिन यह ‘दूसरा’ गांव कहीं नहीं मिला, पर दहशत में सभी थे. दहशत का आलम यह था कि सूरजमुखी के पक चुके फसल काटनेे के लिए मजदूर तैयार नहीं. अंंत में किसानों ने हजारों एकड़ में फैली फसल को या तो यूं ही छोड़ दिया अथवा, खेतों में खड़ी फसल को आग के हवाले कर दिया. इस झूठी अफवाह से किसे फायदा हुआ यह तो पता नहीं परन्तु लाखों रुपये की फसल तबाह हो गया. किसान बर्बाद हो गए.

सूचना और तकनीक के विस्तार ने अफवाहों को विश्वव्यापी बना दिया और नुकसान लाखों में नहीं अरबों खरबों में होने लगा. सूचना तकनीक की यह सदी अपने प्रारंभ से ही इस विश्वव्यापी अफवाहों का शिकार होता आ रहा है और अभी नवीनतम कोरोना संकट भी इसी अफवाहों का ताजा नमूना है. पर इस झूठे संकट की आड़ में हजारों लोगों को मार डाला गया, जेलों में बंद कर दिया गया और करोड़ों भारतवासी सड़कों पर तिलतिल मरने छोड़ दिया गया.

पत्रकार संजय मेहता ने अपने सोशल मीडिया पेज बहुत ही सरल व रोमांचक तरीके से कोरोनाजनित अफवाहों से पर्दा उठाया है. संवाद के शक्ल में यहां प्रस्तुत है –

कोरोना और उसके ब्यायफ्रेंड के बीच की बातचीत, जो लीक हो गयी है. वे दोनों दिल्ली के कनॉट प्लेस पर मिलते हैं.

ब्यायफ्रेंड : हाय, कोरोना कैसी हो ?
कोरोना : मैं ठीक हूंं बेबी, तुम बताओ कैसे हो ?

ब्यायफ्रेंड : मैं ठीक हूंं, लेकिन ये बेबी-बाबा मत बोलो.
कोरोना : क्यों क्या हुआ ? गुस्सा क्यों कर रहे हो ?

ब्यायफ्रेंड : तुम्हें दिखाई नहीं देता, 60 – 70 दिनों से तेरे खिलाफ लिख रहा हूंं. माहौल भी तेरे खिलाफ बना हुआ है. तुमने कितना नाश किया है, पता भी है तुम्हे ?

कोरोना : अरे मैं क्या बोलूंं, मैं साधारण-सी हूंं, हैसियत भी बड़ी नहीं है. बिली ब्याय और काफी लोग मुझे मिलकर इस काबिल बना दिए हैं.

मैं तो कहती हूंं मुझे भाव ही मत दो, सारा मामला ठीक हो जाएगा. तुमलोग के भाव के कारण मेरे भी नखरे बढ़ गए हैं. तुमलोग भाव दे रहे तो मैं भी ठुमक – ठुमक़ के जहांं – तहांं दस्तक दे रही हूंं.

ब्यायफ्रेंड : अच्छा ये बात है ?
कोरोना : हांं यही बात है !

ब्यायफ्रेंड : अच्छा सुनों तुमसे कुछ जरूरी बातें कहनी है !
कोरोना : हांं, बोलो

ब्यायफ्रेंड : कोरोना जब तुम शुरू में आयी तो बहुत हल्ला हुआ था कि तुम बहुत डेमोक्रेटिक हो. सबसे दोस्ती कर लेती हो ! जात – धर्म नहीं पहचानती.

लेकिन कुछ दिन से देख रहा हूंं तुम बहुत बदली – बदली हो. तुम भी भेदभाव करने लगी हो. तेरा भेदभाव का यह व्यवहार अच्छा नहीं लग रहा है. ऐसा क्यों कर रही हो ?

कोरोना : अच्छा ऐसा क्या हुआ ? जरा बताओ ?

ब्यायफ्रेंड : देखो सवाल और सबूत तो बहुत हैं. वैसे कुछ बता रहा हूंं.

तुम शुरू में आयी तो ये हल्ला हुआ की भीड़ से, मिलने – जुलने से, यहांं तक कि दरवाजे के हैंडल, लिफ्ट के बटन से भी फैल सकती हो !

तेरे लिए कहा गया कि लॉकडाऊन, क्वारंटाईन, आइसोलेशन में रहना होगा. सामाजिक दूरी रखना होगा। गाड़ी – घोड़ा, ऊंंट, जहाज सब बंद करवा दी.

तुम यह सब तब करवायी जब तुम बहुत कम फैली थी. आज जब तुम आंंकड़ों के अनुसार ज्यादा फैल गयी हो, फिर ये सब नियम हवा हवाई क्यों हो गए हैं ?

मंत्री जी कहते हैं जहाज से जो आना – जाना करेगा उसको क्वारंटाईन में नहीं रहना होगा !

तुम रेल, बस में सामाजिक दूरी का पालन करवाती हो और हवाई जहाज के लिए यह सब बंद करवा देती हो, ऐसा क्यों ?

क्या जिस जहाज से तुम आयी थी, उससे तेरा रिश्ता नाता अब खत्म हो गया है ?

तुमसे एक और शिकायत है, जिस तरह तुम महिला होकर महिलाओं का पूरा ध्यान रख रही हो ! उनलोगों के पास बहुत कम जा रही हो ! महिलाओं को क्वारंटाईन भी बहुत कम होना पड़ रहा है ! इससे साफ होता है कोरोना की तुम बहुत भेदभाव करती हो.

अभी देखो सारा बाजार, रेल, बस, जहाज सब धीरे – धीरे खुलने लगा है ! हमको एक बात अभी तक समझ नहीं आ रहा कोरोना कि आखिर जब तेरा प्रभाव कम था, तब बंद और अब ज्यादा होने पर खोलने के पीछे क्या खेल है ?

कोरोना : देखो तेरी सारी बातों को सुन ली हूंं. तुम्हे सारी सच्चाई और खेल का पता है। मुझे कुछ बोलना नहीं है.

मैं अगले कुछ दिनों में चली जाऊंंगी लेकिन एक जरुरी बात कहना है, पूरे विश्व में तुमलोगों को जबदस्ती वैक्सीन लेने बोला जा सकता है, इसलिए इस बात पर कोई सहमती मत करना.

मेरा कोई वजूद नहीं था. तुमलोगों ने इतना हाय – तौबा मचा दिया है कि मेरा वजूद बन गया है. जैसे ही ये हाय – तौबा बंद होगा, मेरा वजूद मिट जाएगा.

ब्यायफ्रेंड : फिर हमलोग क्या करें ?
कोरोना : तुमलोग मुझे ignore करना शुरू करो. जिंदगी जीना शुरू करो. यहीं पर समाधान है.

कोरोना : ओके, अब मैं जा रही हूंं. दूसरे देश में भी जाना है. डयूटी बहुत टाइट है.

ब्यायफ्रेंड : अलविदा कोरोना. अब मत आना इधर. मैं भी तुमसे ब्रेक अप कर रहा हूंं.

कोरोना : अलविदा, मैं जा रही हूंं. यादों में, संवादों में याद रखना.

और इस तरह अलविदा बोलते हुए कोरोना कनॉट प्लेस से अपने सफर पर चली गयी.

अंत में, संजय मेहता लिखते हैं – COVID-19 के केस तो जरूर मिले लेकिन दो कौड़ी का वायरस कुछ बिगाड़ नहीं पाया. जानकारी के लिए यह बताना जरूरी है कि नोवल कोरोनावायरस की हैसियत दो कौड़ी की है. COVID-19 को बिना मतलब का हीरो बना दिया गया है.

आपके शरीर के अंदर लाखों करोड़ों क्षमता वाली इम्यूनिटी है. इम्यूनिटी पर विश्वास रखिए. डरना बिल्कुल नहीं है. डरना मना है. Covid-19 सड़क छाप गुंडा से भी गया गुजरा है. इसको बेवजह वायरस का वजीर – ए – आजम की तरह पेश किया जा रहा है.

आपका शरीर हीरो है. आप सब हीरो हैं. आपका बॉडी इस वायरस को चुटकी में नेस्तनाबूत कर देगा. लाखों लोगों ने इसे पटखनी दे दी है. लाखों लोग जीत गए हैं. जीत रहे हैं. आप जितना डरेंगे बाजार उतना गरम होगा इसलिए दिमाग ठंडा रखिए और जोर से कहिए – ‘हुक्मरानों सुनों, जल्दी हमारा सुकून हमें वापस करो ! वापस करो !!’

Read Also –

अमेरिकी जासूसी एजेंसी सीआईए का देशी एजेंट है आरएसएस और मोदी
संक्रामक रोग बायोलॉजिकल युद्ध व शोषण का हथियार
लॉकडाऊन का खेल : एक अन्तर्राष्ट्रीय साजिश
कोरोना वायरस बनाम लॉकडाऊन
डॉ. सुधाकर राव : सुरक्षा किट की मांग पर बर्खास्तगी, गिरफ्तारी और पिटाई
पीएम केयर फंड : भ्रष्टाचार की नई ऊंचाई
आरोग्य सेतु एप्प : मेडिकल इमरजेंसी के बहाने देश को सर्विलांस स्टेट में बदलने की साजिश
बिना रोडमैप के लॉक डाउन बढ़ाना खुदकुशी होगा
कोराना वायरस : अर्थव्यवस्था और प्रतिरोधक क्षमता
कोराना पूंजीवादी मुनाफाखोर सरकारों द्वारा प्रायोजित तो नहीं
भारतीय अखबारों की दुनिया का ‘पॉजिटिव न्यूज’
कोरोनावायरस आईसोलेशन कैप : नारकीय मौत से साक्षात्कार
कोरोनावायरस के आतंक पर सवाल उठाते 12 विशेषज्ञ
कोरोना : महामारी अथवा साज़िश, एक पड़ताल

[प्रतिभा एक डायरी स्वतंत्र ब्लाॅग है. इसे नियमित पढ़ने के लिए सब्सक्राईब करें. प्रकाशित ब्लाॅग पर आपकी प्रतिक्रिया अपेक्षित है. प्रतिभा एक डायरी से जुड़े अन्य अपडेट लगातार हासिल करने के लिए हमें फेसबुक और गूगल प्लस पर ज्वॉइन करें, ट्विटर हैण्डल पर फॉलो करे…]

Load More Related Articles
Load More By ROHIT SHARMA
Load More In ब्लॉग

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Check Also

नारेबाज भाजपा के नारे, केवल समस्याओं से लोगों का ध्यान बंटाने के लिए है !

भाजपा के 2 सबसे बड़े नारे हैं – एक, बटेंगे तो कटेंगे. दूसरा, खुद प्रधानमंत्री का दिय…