प्रधानमंत्री का 8 बजे वाला भाषण सुनने से पहले पीएम केयर फंड के पीछे की इस कहानी को पढ़ जाना चाहिए. श्याम मीरा सिंह के शब्दों में पीएम केयर फंड का तथ्यात्मक विश्लेषण यहां प्रस्तुत है.
तमाम जानकारों का कहना है कि पीएम केयर फंड ट्रांसपेरेंट नहीं है, इसकी जांच कैैैग नहीं कर सकता. जैसा कि खुद सरकार ने एक RTI के जबाव में साफ भी कर दिया है। RTI में कैग ने स्वयं कहा है कि हमें पीएम केयर फंड को जांच करने का अधिकार नहीं है.
अब आपके मन में आया होगा कि कैग से जांच होना ही क्यों जरूरी है ? और आखिर ये कैग किस बला का नाम है ? दरअसल कैग ( Comptroller and Auditor General of India) भारतीय संविधान के अनुच्छेद 148 के द्वारा नियुक्त ऐसी न्यूट्रल संस्था होती है, जो सरकारी खर्चे का लेखा-जोखा रखती है, कि कहांं-कहांं गड़बड़ हुई, कहांं कितना पैसा खर्च हुआ, कैग इन्हीं सबका हिसाब रखती है, ऑडिट रखती है.
कांग्रेस सरकार के समय कुछ कथित घोटाले भी कैग की जांच के बाद ही सामने आए थे. हालांकि उनमें से एकाध मामला बाद में कोर्ट में गलत भी पाया गया लेकिन आप इस उदाहरण से अंदाजा लगा सकते हैं कि यदि कैग के रूप में नियुक्त व्यक्ति की मंशा सही हो तो कैग कितनी शक्तिशाली स्वतंत्र संस्था के रूप में काम कर सकती है.
अब आते हैं कि पीएम केयर फंड पर. इस फंड की जांच को लेकर सरकार का कहना है कि इसकी जांच कैग नहीं कर सकती लेकिन इसका ऑडिट एक थर्ड पार्टी द्वारा किया जाएगा. अब आपके मन में आया होगा कि ये थर्ड पार्टी ऑडिट टीम क्या बला है ? सरकार का कहना है कि पीएम केयर फंड के जो ट्रस्टी होंगे, वही ऑडिट करने वाले लोगों को नियुक्त करेंगे.
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जिस संस्था की जांच की जानी है, वह संस्था ही अपने जांचकर्ताओं की नियुक्त करेगी ? सीरियसली ? क्या ये हितों का टकराव नहीं है ?
इसके भी आगे आपको जानना जरूरी है कि पीएम केयर फंड के ट्रस्टी कौन होंगे जो इन जांचकर्ताओं को चुनेंगे ? पीएम केयर फंड की वेबसाइट पर लिखा हुआ है कि प्रधानमंत्री इस फंड के चेयरमैन होंगे, तीन केबिनेट मंत्री इसके मेम्बर होंगे, तीन केबिनेट मंत्री मतलब, रक्षा मंत्री, गृह मंत्री, और वित्त मंत्री.
अब ये सब मेम्बर तीन और अन्य सदस्यों को चुनेंगे जो हेल्थ, रिसर्च, दानकर्ताओं, पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन और सोशल वर्क से जुड़े हुए हो सकते हैं. जैसे हेल्थ से बंदा चाहिए होगा तो संदीप पात्रा है ही, दानकर्ताओं में से एक बंदा चाहिए होगा तो अक्षय कुमार है ही, पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन में चाहिए तो चमचागिरी करने वाले तमाम रिटायर्ड डीएम और सचिव मिल ही जाने हैं.
कुल मिलाकर ये जो तीन अन्य मेम्बर चुने जाएंगे वे प्रधानमंत्री और अन्य तीन केबिनेट मंत्रियों के चहेते ही होंगे. इन सबको मिलाकर बनता है – ‘पीएम केयर फंड का ट्रस्ट.’
अब ये ट्रस्ट ही डिसाइड करेगा कि इनके द्वारा खर्च किए गए पैसे को कौन सी संस्था ऑडिट करेगी ? यानी कौन-सी प्राइवेट, सस्ती सी भक्त टाइप, दो नम्बरी चार्टर्ड एकाउंटेंट संस्था को पकड़ कर के फंड के खर्चे पर मोहर लगवानी है, ये मोदी जी ही तय करेंगे. इससे आपको तो लगेगा कि जांच हो तो रही है लेकिन उधर सरजी पूरा खेल कर चुके होंगे.
अब आते हैं कि सरकार का क्या तर्क है कि वह क्यों कैग पर ऑडिट न करवाकर प्राइवेट लोगों ऑडिट करवा रही है ?
सरकार का कहना है, ‘चूंकि इसमें आने वाला पैसा दान का पैसा है इसलिए इसकी जांच कैग नहीं कर सकता. हमारी मर्जी है जिससे चाहे करवाएंगे.’
अब आप थोड़ा आउट ऑफ द बॉक्स चलिए. इसी तरह आपातकाल से सम्बंधित एक और फंड है, 1948 के टाइम से. इसका नाम है प्रधानमंत्री राहत कोष, अंग्रेजी में PM Relief Fund. आपको बता दूं जैसे पीएम केयर फंड में दान का पैसा आता है, बजट से नहीं आता, उसी तरह इसमें भी दान का ही पैसा आता है, बजट से कोई पैसा नहीं आता.इ स फंड की जानकारी के सम्बंध में कैग ने बताया है कि वह भी प्रधानमंत्री राहत कोष की जांच नहीं करते. इसका ऑडिट भी थर्ड पार्टी ही करती है.
हालांकि करते नहीं हैं इसका मतलब ये नहीं है कि कैग PM Relief Fund की जांच नहीं कर सकती है, कैग के अनुसार कैग जब चाहे सरकार से इस फंड के बारे में पूछ सकती है. जैसे कि उत्तराखंड आपदा के समय कैग ने इस फंड के हिसाब के बारे में पूछा था. कैग के इस बयान की पुष्टि आपको द वायर नाम की अंग्रेजी न्यूज वेबसाइट पर मिल जाएगी. इस लिहाज से रिलीफ फंड, पीएम केयर फंड से अधिक ट्रांसपेरेंट है.
अब आप एक अफवाह के बारे में भी जान लीजिए. भाजपा के अवैतनिक आईटी सेल द्वारा एक अफवाह फैलाई जा रही है कि पीएम केयर फंड इसलिए बनाया है क्योंकि प्रधानमंत्री रिलीफ फंड कांग्रेस के टाइम बना था, इसलिए इसकी चेयरमैन कांग्रेस की अध्यक्ष होती है, यानी सोनिया गांधी. फंड में से खर्चा बिना सोनिया गांधी की मर्जी के खर्च नहीं किया जा सकता.
असल में आईटी सेल का ये दावा भी देशवासियों को भ्रमित करने से अधिक नहीं है. रिलीफ फंड का अध्यक्ष कांग्रेस अध्यक्ष नहीं बल्कि देश के प्रधानमंत्री होते हैं. उन्हीं के निर्देशों के आधार फंड से खर्च किया जाता है. इस समय रिलीफ फंड के चैयरमैन सोनिया गांधी नहीं बल्कि अप्रिय प्रधानमंत्री मोदी हैं. उनकी मर्जी के बिना इस फंड से चवन्नी भी खर्च नहीं की जा सकती. इसलिए भाजपा आईटी सेल का दावा हजारों पिछले दावों की तरह इस बार भी झूठा ही निकला है.
‘द प्रिंट’ की 4 अप्रैल की एक रिपोर्ट के अनुसार प्रधानमंत्री राहत कोष में ऑलरेडी 2200 करोड़ रूपए ऐसे ही पड़े हुए हैं, उनका कोई यूज नहीं हुआ है. प्रधानमंत्री चाहते तो कोरोना से लड़ाई में उनका उपयोग कर सकते थे, लेकिन मालूम नहीं प्रधानमंत्री ने ऐसा क्यों नहीं किया.
अब अगला सवाल ये कि प्रधानमंत्री के पास पहले से ही, प्रधानमंत्री के नाम का एक आपातकाल कोष था तो फिर प्रधानमंत्री ने एक दूसरा नया कोष क्यों बनाया ? और यदि बनाया भी है तो उसकी जांच के लिए प्राइवेट लोगों को रखने की बात क्यों की जा रही है, जबकि प्रधानमंत्री तो अपने भाषणों में हमेशा ‘पारदर्शिता’ का जिक्र करते हैं. क्या प्रधानमंत्री ने पारदर्शिता के अपने सिद्धांत को महामारी के काल में श्रद्धाजंलि दे दी है ?
अब आते हैं कि क्या सच में पीएम केयर फंड में आया हुआ पैसा, केवल दान किया हुआ पैसा है ? उसमें कोई भी सरकारी पैसा नहीं है ? तो अब इसकी हकीकत भी सुनिए.
फाइनेंसियल एक्सप्रेस की 31 मार्च की एक रिपोर्ट के अनुसार स्टील मंत्री धर्मेंद्र प्रधान के कहने पर स्टील मंत्रालय के अंतर्गत आने वाली 8 सरकारी कम्पनियों (PSUs) ने 267.55 करोड़ रुपए पीएम केयर फंड में कंट्रीब्यूट किए हैं. ये 8 PSU हैैं – SAIL, RINL, NMDC, MOIL, MECON, KIOCL, MSTC, and FSNL आदि.
फाइनेंसियल एक्सप्रेस की ही 4 अप्रैल की एक रिपोर्ट के अनुसार सरकारी कम्पनियों ने पीएम केयर फंड में करीब 2500 करोड़ रुपए से अधिक पैसे कॉन्ट्रिब्यूशन करने का निर्णय लिया है।
ऐसे ही अंग्रेजी वेबसाइट ‘द प्रिंट’ की 4 अप्रैल की एक रिपोर्ट के अनुसार पीएम केयर फंड में करीब 500 करोड़ रूपए से अधिक पैसे देश की सेना, नेवी, एयरफोर्स, डिफेंस की सरकारी कंपनियों और रक्षा मंत्रालय के कर्मचारियों से आए हैं.
अंग्रेजी अखबार ‘द हिन्दू’ बिजनेस लाइन की 31 मार्च की खबर के अनुसार Ministries of Power & MNRE ने पीएम केयर फंड में 925 करोड़ रूपए देने का निर्णय लिया है. ये लिस्ट बहुत लंबी है, इतनी लंबी की आप ये पोस्ट बीच में ही छोड़कर चले जाएंगे. लाखों सरकारी कर्मचारियों का वेतन काटकर उसे दान का नाम दे दिया गया है. बड़े ही शातिर तरीके से प्रधानमंत्री के इस निजी कोष में जमा करवा दिया गया है.
‘द वायर’ पर छपी एक रिपोर्ट के अनुसार दिल्ली विश्वविद्यालय के वाइस चांसलर ने सभी कर्मचारियों से पैसे तो लिए प्रधानमंत्री रिलीफ फंड के नाम पर और दान कर दिए पीएम केयर फंड में, जिसकी शिकायत दिल्ली विश्वविद्यालय की टीचर्स एसोसिएशन ने की है.
ये कोई छोटी मोटी रकम नहीं है. हजारों करोड़ की रकम है. ये आपका पैसा है, आपके प्रत्यक्ष, अप्रत्यक्ष करों का पैसा है. सरकारी कम्पनियों का पैसा, किसी पार्टी का पैसा नहीं होता, वह प्रधानमंत्री और उसके मंत्रियों का पैसा भी नहीं होता, वह जनता का पैसा है और जनता के पैसे की जांच प्रायवेट हाथों में नहीं दी जा सकती ? उसकी जांच उसी तरीके से की जा सकती है, जिस तरह से संविधान में वर्णित है.
संविधान के अनुच्छेद 148 में बाकायदा CAG संस्था का जिक्र है, जो सरकारी पैसे का लेखा जोखा करती है, जो ये नजर रखती है कि कुछ भी गड़बड़ तो नहीं हुई है. पीएम केयर फंड में हजारों करोड़ रुपया मंत्रालयों, PSUs और सरकारी कर्मचारियों के वेतन का लगा हुआ है, इसका ऑडिट प्राइवेट हाथों द्वारा कैसे किया जा सकता है ?
पीएम केयर फंड में संकट के समय देश के नाम पर हजारों करोड़ रुपया लिया गया है.हजारों कम्पनियों ने मन भर के दान दिया है, सरकारी पैसा भी लगा है. प्रधानमंत्री की जिम्मेदारी बनती है कि इसकी स्वतंत्र जांच हो ताकि भविष्य में संकट के समय इसी तरह लोग खुलकर दान कर पाएं.किसी भी तरह का घपला सरकार की विश्वसनियता को ही प्रभावित नहीं करेगा, बल्कि देश के सामान्य जन संकट के समय मदद करना बंद कर देंगे. इससे एक गलत परिपाटी का जन्म होगा जो भविष्य में देश के लिए घातक साबित हो सकती है.
प्रधानमंत्री तमाम मंचों से ट्रांसपेरेंसी की बात करते हैं, फिर इस मामले में गड़बड़ी क्यों कर रहे हैं ? कायदा से प्रधानमंत्री को कैग को ही और अधिक उत्तरदायित्व और पारदर्शी बनाना चाहिए था, लेकिन प्रधानमंत्री ने तो उल्टा कैग से कैग का काम ही छीन लिया. ये सरासर भ्रष्टाचार है, अनैतिक है. संकट के इस समय में प्रधानमंत्री को इतनी असंवेदनशीलता नहीं दिखानी चाहिए थी.
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