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सत्ता पर बैठे जोकरों के ज्ञान से ‘अभिभूत’ देशवासी

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सत्ता पर बैठे जोकरों के ज्ञान से 'अभिभूत' देशवासी

कहावत है छोटे मियां तो छोटे मियां, बड़े मियां सुभान अल्लाह. ज्यादा दिन नहीं बीते हैं जब भाजपा और मोदी के रामराज्य का प्रतीक उत्तर प्रदेश में प्रवासी मजदूरों को कीटनाशक दवाओं से सेनिटाइज करने के बहाने रामराज्य की पुलिस ने नहला दिया था. इसके बाद बहुत सारे बच्चों की आंखों में जलन की होने लगी परन्तु रामराज्य की पुलिस ने किसी को अस्पताल में भर्ती नहीं किया गया.

ये तो बात हुई छोटे मियां की. बड़े मियां अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप तो इससे भी चार कदम आगे निकल गये. छोटे मियां तो कीटनाशक से नहलाने तक ही सीमित रहा, पर बड़े मियां ट्रंप तो बकायदा कीटनाशक दवाओं के इंजेक्शन देने की बात करने लगा. बड़े मियां ट्रंप की खिदमत जानने के लिए हम मैग्सेसे अवार्ड प्राप्त पत्रकार रविश कुमार के एक पोस्ट को देखते हैं, जिसका शीर्षक ही है, ‘जोकर का इक्का है कीटनाशक से इंजेक्शन देने का बयान, ट्रंप की बादशाही अमर रहे !’

‘मान लीजिए बहुत सारी अल्ट्रावॉयलेट किरणें या शक्तिशाली किरणें शरीर पर डाली जाती हैं, और मुझे लगता है कि इसे चेक नहीं किया गया है लेकिन मैं कहता हूं कि अगर आप शरीर के भीतर रौशली ले जाते हैं, या तो आप अपनी त्वचा के ज़रिए कर लें या किसी और तरीके से और मुझे लगता है इसका जल्दी ही परीक्षण किया जाएगा.’

‘विषाणुओं को मारने वाला रसायान (disinfectant) एक मिनट में ही मार देता है. एक मिनट में. और कई तरीके हैं जिससे हम ये कर सकते हैं. शरीर के भीतर इंजेक्शन देकर या उससे शरीर को साफ करके क्योंकि आप देखिए कि यह फेफड़े के भीतर जाता है. इसका असर होता है इसलिए इसकी जांच की जानी चाहिए.’

अमरीका के राष्ट्रपति ट्रंप ने कोविड-19 लेकर जो उपाय सुझाए हैं उससे दुनिया भर के झोला छाप डॉक्टरों में ग़ज़ब की बेचैनी मची है. आप सोचिए जिस रसायन का छिड़काव कर आप विषाणु या कीटाणु को मारते हैं, उसे इंजेक्शन से शरीर के भीतर पहुंचाया जाए तो क्या होगा ? जवाब साधारण है – मरीज़ मर जाएगा.

ट्रंप के सपोर्टर अपने राष्ट्रपति और नेता की हर बेवकूफियों को कोहिनूर हीरा समझ कर सर पर बिठाते थे लेकिन ये एक ऐसा बम गिरा है कि बेवकूफों को भी लग रहा है कि उनके पास अक्ल थी तो उसका इस्तेमाल क्यों नहीं कर रहे हैं ? क्या तब भी नहीं कर रहे हैं जब ट्रंप की बातों में आकर डॉक्टर कीटाणुनाशक इंजेक्शन इंसान को देने लगेंगे और वो मरने लगेगा ?

इसी ट्रंप के लिए फरवरी के महीने में अहमदाबाद में रैली सजाई गई थी. इनकी सोहबत से भारत विश्व गुरु बनने का सपना देख रहा था. जिस महीने में कोरोना से लड़ने की तैयारी हो जानी चाहिए थी, उस महीने हम अहमदाबाद में ट्रंप के स्वागत के लिए दीवारें बना रहे थे. उस सभा का क्या असर हुआ ? लोगों की स्मृतियों में उसकी तस्वीरें धुंधली हो गई हैं लेकिन जनवरी और फरवरी के महीने में भारत और अमरीका की बेपरवाही वहां के लोगों और अर्थव्यवस्था के लिए भारी पड़ गई.

ट्रंप ने अपने इस बयान से अमरीका को शर्मिंंदा किया है. राष्ट्रपति पद की गरिमा गिरा दी है. सत्ता को ताश के पत्तों का खेल समझने वाला यह बादशाह का इक्का जोकर का पत्ता बन गया है. अमरीका में कीटनाशक स्प्रे बनाने वाली कंपनी लाइज़ोल ने लोगों से कहा है कि ‘ऐसा बिल्कुल न करें. उनकी जान चली जाएगी.’

यह क़ाबिले ग़ौरतलब है कि ट्रंप अपनी तमाम बेवकूफियों से बेपर्दा होने का जोखिम उठाते हैं और हर दिन प्रेस कांफ्रेंस में हाज़िर होते हैं. प्रेस का मज़ाक उड़ाते हैं मगर प्रेस के सामने होते हैं. सवालों के सामने होते हैं. कई बार तो ढाई ढाई घंटे तक प्रेस के बीच होते हैं. भारत जब सुपर पावर होगा तब ये सब तो होगा नहीं क्योंकि आज भी नहीं होता है.

अब उनके साथी और सहयोगी इस फिराक़ में हैं तो कैसे भी प्रेस कांफ्रेंस से इस बादशान को दूर रखा जाए. भले ही इसके समर्थक हर तर्क और तहज़ीब को ताक पर रख कर झंडा उठाए फिर रहे हैं लेकिन 24 अप्रैल की प्रेस कांफ्रेंस में कोविड-19 के उपचार को लेकर जो कहा है, उसके बाद सुनने वाले बेहोश हुए जा रहे हैं.

ट्रंप कहते हैं कि मज़ाक किया था मगर आप वीडियो देखें. जब वो बोल रहे थे तो कितने गंभीर थे. दुनिया में ऐसे ही रंगीन ख़्यालों का दौर है. जनता इन्हें कुर्सी पर बिठा कर खुद से बदला ले रही है. एक जोकर के पीछे दांव लगा कर उसने पाया क्या ? अमरीका में 53000 से अधिक लोग मर गए. उसकी अर्थव्यवस्था ध्वस्त हो गई.

भारत में ट्रंप के समर्थकों को निराश होने की ज़रूरत नहीं है. अभी तो ट्रंप ने गौ-मूत्र का आइडिया नहीं बेचा है. गौ/मूत्र पार्टी से कोरोना से लड़ने वालों को प्रधानमंत्री मोदी ने भी भाव नहीं दिया. पहले राष्ट्र के नाम संबोधन में कहा कि इसका कोई इलाज नहीं है. किसी गौ-मूत्र वाले ने नहीं कहा कि प्रधानमंत्री ग़लत बोल रहे हैं. गौ-मूत्र से इलाज हो सकता है.

बेवकूफी विकल्प है. दुनिया में अजब-ग़जब नेताओं का दौर चल रहा है. नौकरियां जा रही हैं. सैलरी बढ़ी नहीं पिछले पांच छह साल में लेकिन कभी माइग्रेंट तो कभी ईरान के नाम पर ट्रंप के समर्थकों को मीम का खुराक मिल जाता है. नशा चढ़ता रहता है.

पहले तमाशा होता था तो मास्टर के हाथ में जोकर होता था और जनता हंसती थी. अब जोकर के हाथ में जनता है. वो जानती है कि जोकर ही उसका मास्टर है इसलिए डर से वह हंसना भी छोड़ चुकी है. ट्रंप की सफलता के लिए हवन जारी रहे. कीटनाशक से इंजेक्शन बनाने वाले इस जोकर राष्ट्रपति और उसके समर्थकों को ईश्वर एक इंजेक्शन की शक्ति दे. कोविड-19 की विदाई संभव है.

रविश कुमार का लेख यही समाप्त होता है लेकिन जोकरों के हाथ में फंसी जनता की पीड़ा अभी और बढ़ेगी, जब तक कि वह अपने देशी जोकरों का हाथ मरोड़कर सत्ता की बागडोर अपने हाथ में नहीं ले लेती.

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