पं. किशन गोलछा जैन, ज्योतिष, वास्तु और तंत्र-मंत्र-यन्त्र विशेषज्ञ
कोरोना वायरस और उसका डर लगातार वैश्विक स्तर पर बढ़ रहा है लेकिन कोरोना वायरस से भी भयावह बात यह है कि बहुत से लोगों को यह नहीं पता कि वे इस वायरस के वाहक हैं. ऐसा इसलिये क्योंकि उन्हें भी नहीं पता कि वे संक्रमित है और उनके अंदर एक्टिव वायरस मौजूद है. और जब ऐसे लोगों को जब ख़ुद ही नहीं पता होता कि वो बीमार हैं तो वो ख़ुद को दुसरों से अलग कैसे रखेंगे ?
कोरोना वायरस ज़्यादा ख़तरनाक इसलिये ही साबित हो रहा है क्योंकि लोगों को उसके बारे में काफ़ी कम पता है और फालतू की अफवाहों ने उन्हें और ज्यादा कन्फ्यूज किया हुआ है. इन अफवाहों के सबसे ज्यादा जन्मदाता नेता ही है. कोरोना पर पूरी दुनिया में अलग-अलग देशों के नेताओं ने ऐसे बयान दिये हैं. अतः इसे सिर्फ भारत के नेताओं से जोड़कर न पढ़ा जाये.
इन बेवकूफ नेताओ को लगता है कि उन्हें दुनिया की हर चीज़ के बारे में सब पता है लेकिन असल में उनका ज्ञान ढेले भर का भी नहीं है. मुझे तो लगता है कि कोरोना से ज्यादा बड़ी चुनौती कोरोना की अफवाहों से निपटना है. कृपया अफवाहों पर ध्यान न दे और जैसा कि प्रधानमंत्री मोदी ने 19 अप्रैल के अपने ट्वीट में लिखा था कि ‘कोविड-19 हमला करने से पहले नस्ल, धर्म, रंग, जाति, भाषा या सीमा को नहीं देखता है … हमारा जवाब और व्यवहार भी ऐसा होना चाहिये कि एकता और भाईचारे को अहमियत दी जाये.’
मोदीजी के इस बयान से मैं मोदी और बीजेपी का धुर विरोधी होने के बावजूद समर्थन करता हूंं और समझता हूंं कि मोदीजी ने अपने पुरे जीवनकाल में इससे बढ़िया सन्देश नहीं दिया होगा लेकिन लगता है मोदीभक्त इस सन्देश की गंभीरता को नहीं समझ रहे हैं और इसीलिये तो इंदौर के एक किराना व्यापारी के वायरल वीडियो को देखकर मन में बहुत दुःख हुआ.
वीडियो में दुकानदार कह रहा है कि ‘मैं नहीं दे पाऊंगा मुसलमानों को सामान. मेरी फ़ोटो ले लो, मेरा वीडियो बना लो लेकिन मैं मुसलमानों को सब्ज़ी या सामान नहीं दूंगा क्योंकि कुछ कट्टरवादी हिन्दू ऐसा करने पर मेरी दुकान जलाने की धमकी दे रहे हैं. अतः मैं नहीं दे पाऊंगा सामान.’
ये वीडियो इंदौर के एक सिख बहुल मोहल्ले का बताया जा रहा है, जिससे पता चल रहा है कि अफवाहों ने हमारी सभ्यता में किस कदर सांप्रदायिक जहर घोल दिया है जबकि कॉमनसेंस की बात ये है कि मुसलमान कोरोना के पर्याय या वाहक नहीं है बल्कि संक्रमित व्यक्ति (चाहे वो किसी भी कौम का हो वो) उसका वाहक है.
पिछले महीने जब मैं लुधियाना गया था तो दोनों भतीजे मेरे साथ बीकानेर आ गये थे और दोनों किशोर अवस्था में हैं और उन्हें फिल्म देखने का बहुत शौक है. अतः मैं उन्हें शाम को हमेशा एक बढ़िया सब्जेक्ट की फिल्म चुनकर लैपटॉप पर दिखाता हूंं और ऐसे ही कल एक फिल्म कॉन्टाजियॉन (Contagion) का नाम मिला जिस पर कोष्ठक में covid-19 लिखा था, तो मन में कुतूहल हुआ कि इतनी जल्दी इस पर फिल्म किसने बनायी ?
तो उनके साथ मैंने भी देखी लेकिन असल में वो एक वायरस पर बनी फिल्म थी, जिसकी परिस्थितियांं बिल्कुल आज की हालातों से मिलती-जुलती है इसलिये यू-ट्यूबर उसका प्रचार covid-19 लिखकर कर रहे हैं ताकि उनके सब्स्क्राइब ट्रेफिक बढे ! (इससे वे पैसे कमाते हैं. कैसे का जवाब फिर कभी लिखूंगा, शायद आप में से बहुत से लोग तो जानते भी होंगे.)
फिल्म बहुत शानदार है और 2011 में बनायी हुई है और डायरेक्टर ने इसे इतना शानदार तरीके से फिल्माया है कि आप इसे देखते हुए अभी के वैश्विक हालातों में खो जायेंगे. लेकिन इस फिल्म की सबसे बड़ी खामी ये भी है कि इसे देखते हुए आप बहुत ज्यादा (कोरोना से) डर जायेंगे और फिल्म रूढ़िवाद का भी पोषण करती है लेकिन एक बार देखने लायक है (आप यु-ट्यूब पर इसका नाम डालकर सर्च कर सकते हैं).
आप सोच रहे होंगे कि ये बात संबंधित विषय न होने पर भी मैंने क्यों लिखी ? उसका कारण भी बता रहा हूंं कि असल में इस फिल्म को देखकर आपको समझ आयेगा कि कोरोना को लेकर असल में हम दुसरों के चौकीदार बनते जा रहे हैं और दूसरे स्वच्छ हैं या नहीं, दूसरे ने हाथ धोये या नहीं, दूसरे ने मास्क लगाया या नहीं, दूसरे ने फलां किया या नहीं अर्थात हम दुसरों के चौकीदार बन जाते है.
मैं ये नहीं कहता कि स्वच्छता या सावधानी रखना बेमानी है अथवा सतर्कता नहीं रखनी चाहिये, मगर वो सावधानी, वो सतर्कता सिर्फ अपने प्रति रखे, दुसरों के चौकीदार न बने क्योंकि चौकीदार तो हमारे प्रधानमंत्री पहले से ही बने हुए हैं.
ये दूसरों की चौकीदारी धीरे-धीरे हमारी मानसिकता को नस्लीय भेदभाव का शिकार बना लेती है और हम कट्टर सांप्रदायिक होते जाते हैं, फिर हमें हर सीधी बात में भी दूसरी कौम की जिम्मेदारी लगती है और हम वो सब करने लगते हैं, जैसे उपरोक्त में मैंने इंदौर के संदर्भ में बताया है !
याद रखिये अभी तक ऐसा कोई डेटा उपलब्ध नहीं है जिसकी बुनियाद पर कहा जा सके कि कोविड-19 मुसलमान होने पर होता है अथवा मुसलमान फैला रहे हैं बल्कि इसकी चपेट में दुनिया के सभी देशों के, सभी नस्लों के लोग हैं. अतः अपना सामाजिक व्यवहार संयमित और सम्मानजनक क्योंकि ऐसी परिस्थितियों में (संक्रमणकाल) में नज़र आने वाला हमारा सामाजिक व्यवहार, सामाजिक दृष्टिकोण में भारी बदलाव ला सकता है और इसका खामियाजा आने वाले समय में हम सबको भुगतना पड़ सकता है (इसकी मिसाल हम वर्ष 2014 में देख चुके हैं).
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