मास्क की बात चल रही है. ज़्यादातर लोग बेरोज़गार हैं. जो अपने घरों से रोज़गार की तलाश में दूसरे शहरों को गए थे, वे सब लुट पिट गए हैं. राशन नहीं मिल रहा. कम्युनिटी का दिया खा रहे हैं, वो मास्क कहां से खरीदेंगे ? किसानों की फसल बिकने को खड़ी है. मंडियां बन्द हैं. वे खुद भूखे और बीमार है, मास्क कहां से खरीदेंगे ?
परिवारों में आम तौर से एक कमाने वाला होता है, पांच खाने वाले होते है. 96℅ लोग या तो बेकार हैं या नौकरी और मजदूरी और किसानी के अलावा कोई साधन नहीं. 50% के पास तो सिर छुपाने के लिए घर के नाम पर झोंपड़ी होती है, वे मास्क कहां से खरीदेंगे ?
आपकी मास्क बनाने वाली कम्पनी को कोई फायदा होने वाला नहीं सरकार. देश की दुखती रगों पर हाथ मत रखिये. कुल 4% लोग होंगे जिनके लिए आपका यह सारा गोरखधंधा है. आपकी प्रेस और मीडिया है.
आपके लिए तो ये विस्थापित लोग ज़िंदा रहे या मुर्दा कोई फर्क नहीं पड़ता. आपके लिए ट्रम्प महत्वपूर्ण है क्योंकि वह आपको धौंस दे सकता है, देश का अपमान कर सकता है. अडानी-अम्बानी जैसे लोग महत्वपूर्ण हैं क्योंकि जब तक ये आपका समर्थन करेंगे तब तक आपका राजनीतिक जीवन है. और लोग तो आपके प्रचार के शिकार होते हैं और होते रहेंगे, नहीं तो आपके पूरे दौर में आम आदमी को थोड़ा तो रिलीफ तो मिला होता. वे मास्क कैसे खरीदेंगे ?
वह आम आदमी आपके एजेंडे पर कभी नहीं था और न होगा. आपका राष्ट्र आपका प्रजातंत्र तो सिम्पली ऑईवाश है सरकार, वरना पिछले लगभग 60 वर्षों में जो कमियां रह गयीं थीं उन कमियों पर आपने भाषण तो दिए लेकिन उन कमियों को दूर करने बात तो दूर, आपने उन पीडाओं को और गहरा कर दिया. अब आम आदमी मास्क कहां से और कैसे खरीदेगा ?
आपने तो जीवन भरके वे दु:ख दिए, जिनकी कभी किसी ने कल्पना भी नहीं की थी. करोड़ों मेहनतकश को अपने फुटपाथों के घर छोड़कर वहां से अपने कच्चे घरों के लिए रात की रात भागना पड़ा, पैदल अपने परिवारों के साथ. हाथों में लटकते तीन-तीन साल के बच्चे, आठ महीने की गर्भवती पत्नी गोद में बच्चे को लिये रात में ही निकल पड़ी, वे मास्क क्यों खरीदेंगे और कैसे खरीदेंगे ?
वे दिशाहीन लोग जहां भीड़ चल रही थी, चल पड़े. यह आपकी सोशल डिस्टेंसिंग थी सरकार. चार चार दिन पैदल चले लोग फिर उनकी खबर आनी बन्द हो गयी. कितने लोग अपनी मंज़िल पर पंहुंचे कितने रास्ते मे डूब गए. आपको क्या फिक्र है सरकार, वे मास्क कैसे खरीद सकते हैं सरकार ?
आपने तो घोषणा की थी बस. आपका एजेंडा चालू है, हिन्दू मुसलमान चालू है. आपका मीडिया चालू है. साधन देश के पास हैं नहीं, काम सब हो रहे हैं बधाई सरकार. आपके भाषणों का देश आभारी है.
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भारतीय रेलगाड़ियां देश में वर्गीय विभाजन की जीती जागती मिसाल हैं. इनमें रेलगाड़ी तो एक ही होती है पर अंग्रेजी शासन जैसा ही आर्थिक हैसियत के लिहाज़ से उसमें चार दर्जे अब भी कायम रखे गये हैं. इसका अपवाद देश में या तो कम दूरी वाली पैसेंजर ट्रेनें हैं या फिर इंटरसिटी ट्रेनें हैं जो एक शहर से दूसरे शहर के बीच चलती हैं तथा जिनमें पैसेंजर या एक्सप्रेस का टिकट लेकर किसी भी डिब्बे में बैठकर या खड़े होकर यात्रा की जा सकती है.
परंतु पिछले एक साल से कोरोना की आड़ में ये सेवाएं भी बंद कर दी गयी हैं. देश की अधिकांश ट्रेनों के नाम बदल दिये गये हैं. उन्हें स्पेशल ट्रेनें बना दिया गया है और बिना आरक्षण के पैसेंजर या एक्सप्रेस ट्रेनों के साधारण डिब्बों में भी यात्रा नही की जा सकती है. नतीजतन बसें चलवाने वाले ट्रांसपोर्टर मालामाल हो रहे हैं तथा इन बसों का किराया रेलवे की तुलना में तीन से चार गुना ज्यादा है. रेलवे द्वारा भी मनमाना किराया यात्रियों से लिया जा रहा है.
उत्तर प्रदेश व बिहार के मेहनतकशों के लिए जनसेवा एक्सप्रेस रेलगाड़ी बरौनी से अमृतसर के बीच चलती रही है 24 मार्च 2020 के पहले तक, जिसके सभी डिब्बे चालू डिब्बे थे तथा जिसमें एक्सप्रेस ट्रेन का टिकट लेकर किसी भी डिब्बे में बैठकर यात्रा की जा सकती थी. यह ट्रेन तत्कालीन रेलमंत्री राम विलास पासवान के कार्यकाल में शुरू की गयी थी.
पर भारतीय रेलें देश में मौजूद वर्ग विभाजन का जीता जागता उदाहरण हैं, जिसमें एसी फर्स्ट उच्च वर्ग, एसी सेकेंड व थर्ड उच्च-मध्यम वर्ग, स्लीपर क्लास निम्न मध्य वर्ग तथा जनरल डिब्बे मेहनतकश व गरीब वर्गों के लिए लगाये गये हैं. अर्थात देश की सबसे बड़ी आबादी के लिए सबसे कम स्थान रखा गया है ट्रेनों में. जनरल डिब्बे ट्रेनों में सबसे आगे व सबसे पीछे लगे होते हैं, ताकि यदि ट्रेन आगे या पीछे से टक्कर खाकर हादसे की शिकार हो तो वे ही चपेट में आएं. ज्यादातर वे ही चपेट में आते भी हैं/आते भी रहे हैं.
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सीएए व एनआरसी विरोधी शाहीन बाग के आन्दोलन की ही तरह अब किसानों के आन्दोलन को भी कोरोना की आड़ में खत्म करना चाहते हैं, देश के सत्ताधारी शासक.
जिस तेजी से हिंदी, अंग्रेजी व अन्य भारतीय भाषाओं के अखबारों द्वारा पहले पेज पर कोरोना के केसों की झूठी खबरें बड़ी मात्रा में दी जा रही हैं तथा कोरोना का भय जनता में फैलाया जा रहा है, उससे तो यही लग रहा है कि होली के बाद कुछ दिन के लिए लाकडाउन लगा कर ये जनविरोधी शासक किसानों के आन्दोलन को बलपूर्वक कुचलने व खत्म करने की पूरी कोशिश करेंगे.
अब देखने की बात यह है कि आन्दोलनकारी किसान इनके इस कारनामे का मुकाबला किस तरह से करते हैं ? हिंदी के गुलाम पत्रकार अब कोरोना बैक्टीरिया या तथाकथित विषाणु के विशेषज्ञ बनते हुए कोरोना के नये स्वरुप की बातें अखबारों में लिख रहे हैं.
वर्तमान किसान आन्दोलन की पराजय भारत में आम मेहनतकश जनता तथा लोकतंत्र की पराजय होगी तथा पुलिस राज पर आधारित दक्षिणपंथी फासीवाद की जीत होगी.
- राम चन्द्र शुक्ल
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